वो चाँद जिसकी तारीफों के पुल बांधे थे
न जाने कितनी आदतें बिगाड़ी थी उसकी
सुना है! अब उदास सा रहता है
तुम्हारे जाने के बाद..।
– भानुप्रिया
वो चाँद जिसकी तारीफों के पुल बांधे थे
न जाने कितनी आदतें बिगाड़ी थी उसकी
सुना है! अब उदास सा रहता है
तुम्हारे जाने के बाद..।
– भानुप्रिया
ज़रा सी मोहलातें इनायत तो करो
में उड़ान भरना भी सीख जाउंगी
हवा के कपोलों पर
मस्त लहलहाती हुई
हाथ खोलकर चल दूंगी उस रोज
झूमती हुई पताका सी
बेखौफ
आज़ादी से भरी
विजय की शंखनाद बजाउंगी..
फिर
सौ पाशों से मुक्ति का स्वर
मेरी उड़ानों में भरा होगा
तब न लूंगी मैं
आधा, अधूरा, अदना से चाँद
फिर सारा आसमान मेरा होगा..।
– भानुप्रिया
तेरी यादों में
झनझनाहट की एक नज़्म सी बनती है;
झनझनाहट ऐसी
के दिल ही छू जाए
ऐसी
की कंपा दे प्रत्यंगों को
जैसे तान वीना के निकलते है,
और सब मिल कर
एक साज़ रूप में
मानो तुझको ही गढ़ते हैं।
तुम्हारा ज़िक्र
वही महकता साज़ ही तो है..
साज़ कहाँ कोई बेमाने होते हैं,
साज़ तो बस
दिल छू कर निकलते हैं…।।
– भानुप्रिया
शाम फेरे है आज, और तड़के विदाई
पर एक बात है जो अब तक समझ नहीं आई
आखिर ये घर क्यों छोड़ना पड़ता है वो घर बसाने को…।
– भानुप्रिया
कितनी ही तरकीबें लगाई
न जाने कितनी अटकलें की
ये चाँद! कमबख़्त सुनता ही नही…।
– भानुप्रिया
सालों से सख्त खड़ी है ये दीवार,
पथराई सी बिल्कुल..
न जाने कितने राज़ दफन होंगे सीने में इसके,
एक राज़दान तो होना ही चाहिए सबके हिस्से में…।
– भानुप्रिया
मैं गयी थी एक दफा वहाँ, क्या खूब मंजर था
ख़ामोशी रोशन थी और साथ सुकून सोया था
ये तहखाने हर वक्त इतने डरावने भी नही होते..।
– भानुप्रिया