आँख मुकम्मल सबको लेकिन ख़्वाबों की तक़सीम कहाँ
सबके हिस्से रात तो है, पर सबके हिस्से नींद कहाँ..
मज़हब बंटा दायरे बंधे और रंगों का बंटवारा हुआ
बकरी चढ़ी भद्र काली को बकरा अल्लाह को प्यारा हुआ.,
जो भूखे से रोटी बाँटे ऐसा ईमान ओ दीन कहाँ
सबके हिस्से रात तो है पर सबके हिस्से नींद कहाँ..।
I read your shayari Jyoti bhoot khoob…at an young age your writing has depth..may God bless you..well done.
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Thank you for the lovely words mrs Shashidhar… ❤️
It’s Bhanupriya 😊
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