शायरी

आँख मुकम्मल सबको लेकिन ख़्वाबों की तक़सीम कहाँ
सबके हिस्से रात तो है, पर सबके हिस्से नींद कहाँ..
मज़हब बंटा दायरे बंधे और रंगों का बंटवारा हुआ
बकरी चढ़ी भद्र काली को बकरा अल्लाह को प्यारा हुआ.,
जो भूखे से रोटी बाँटे ऐसा ईमान ओ दीन कहाँ
सबके हिस्से रात तो है पर सबके हिस्से नींद कहाँ..।

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