अलाव में बची आग की
थोड़ी महक आई है..
वो चौथे मक़ान की गुलरेज ने
आज आवाज़ उठाई है
अभी तो उठेंगे कितने हाथ, ज़रा रुकिये….।
अभी नाज़ुक है बेहद हालात, ज़रा रुकिये…।
बिकने से परहेज उसका
हुक्मरानों को प्यारा नहीं
तेज आवाज तीखे कटाक्ष,
तमीज़दारो को गवाँरा नहीं.,
अभी तो होना है तमाशबीनों की महफ़िल का आगाज़
ज़रा रुकिये..।
अभी तो खुलेंगे सबके राज़, ज़रा रुकिये..।।