तेरी यादों में
झनझनाहट की एक नज़्म सी बनती है;
झनझनाहट ऐसी
के दिल ही छू जाए
ऐसी
की कंपा दे प्रत्यंगों को
जैसे तान वीना के निकलते है,
और सब मिल कर
एक साज़ रूप में
मानो तुझको ही गढ़ते हैं।
तुम्हारा ज़िक्र
वही महकता साज़ ही तो है..
साज़ कहाँ कोई बेमाने होते हैं,
साज़ तो बस
दिल छू कर निकलते हैं…।।
– भानुप्रिया